Mani Mahesh, Himachal Pradesh

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When are you going ?
 
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One More Devotee Died During Manimahesh Yatra 2019

मणिमहेश श्रद्धालु की मौत, पहाड़ी से पत्थर गिरने से महिला ने तोड़ा दम

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, शिमला Updated Thu, 29 Aug 2019 05:56 PM IST

सांकेतिक तस्वीर


सांकेतिक तस्वीर


हिमाचल में मौसम खुलने से बाद मणिमहेश जाने वाले यात्रियों की संख्या बढ़ गई है। मार्ग बहाल होने से राहत मिली है, लेकिन सांस लेने की दिक्कत के चलते अब तक तीन श्रद्धालुओं की मौत हो चुकी है। गुरूवार को दोस्तों के साथ मणिमहेश पहुंचे पंजाब के एक श्रद्धालु की तबीयत बिगड़ने से मौत हो गई। रेस्क्यू टीम ने शव को भरमौर अस्पताल पहुंचाया है।

मृतक की पहचान कुलविंदर सिंह पुत्र गुरमेल सिंह गांव तपा मंडी, बरनाला (पंजाब) के रूप में हुई है। इससे पहले पठानकोट और दिल्ली का एक श्रद्धालु भी दम तोड़ चुका है। उधर, किन्नौर जिले के निचार खंड के रामनी गांव में बुधवार को मनरेगा कार्य में लगी एक महिला के सिर पर पहाड़ी से पत्थर आ गिरा। हादसे में कांता देवी (45) की मौत हो गई है।

वहीं, मौसम विभाग के अनुसार चार सितंबर तक प्रदेश के कुछ स्थानों में बारिश के आसार हैं। मैदानी इलाकों में धूप खिलने से पारा 36 डिग्री से पार हो गया है। प्रदेश के अधिकतम और न्यूनतम तापमान में दो डिग्री की बढ़ोतरी दर्ज हुई है।


मणिमहेश श्रद्धालु की मौत, पहाड़ी से पत्थर गिरने से महिला ने तोड़ा दम
 

मणिमहेश यात्रा: राधाष्टमी स्नान के लिए शिव चेलों ने दी अनुमति, जानिए मुहूर्त और मान्यता

Publish Date:Tue, 03 Sep 2019 11:57 AM (IST)


मणिमहेश यात्रा: राधाष्टमी स्नान के लिए शिव चेलों ने दी अनुमति, जानिए मुहूर्त और मान्यता


मणिमहेश यात्रा 2019 के अंतिम राधाष्टमी स्नान के लिए यात्रियों ने सोमवार को शिव चेलों से अनुमति लेना शुरू कर दिया है।



भरमौर, जेएनएन। मणिमहेश यात्रा 2019 के अंतिम राधाष्टमी स्नान के लिए यात्रियों ने सोमवार को शिव चेलों से अनुमति लेना शुरू कर दिया है। चौरासी मंदिर परिसर स्थित शिव मंदिर चबूतरे में विराजमान शिव चेलों ने यात्रियों को उनकी सुखमयी व फलदायी यात्रा का आशीर्वाद देकर मणिमहेश रवाना किया। परम शिवभक्त त्रिलोचन के वंशज सचूईं गांव के शिव चेलों ने सोमवार सुबह गांव में स्थित त्रिलोचन के मंदिर में पूजा अर्चना कर चौरासी मंदिर की ओर रुख किया। जहां जम्मू कश्मीर के भद्रवाह क्षेत्र के शिवभक्त बड़ी बेसब्री से उनसे यात्रा की अनुमति मिलने का इंतजार कर रहे थे। अनुमति मिलने के साथ ही इन श्रद्धालुओं ने अपना पारंपरिक भद्रवाही नृत्य कर मणिमहेश की ओर रुख किया।


ज्ञात हो कि पूर्व में भद्रवाही श्रद्धालु शिव चेलों के शिव मंदिर में बैठने वाले दिन ही यात्रा की अनुमति प्राप्त कर मणिमहेश की ओर प्रस्थान करते थे। अब श्रद्धालुओं की संख्या बढऩे के साथ साथ देव छडिय़ों की संख्या भी अधिक हो गई है। इस कारण कुछ श्रद्धालु आज मणिमहेश के लिए रवाना हो गए तो शेष आगामी दिनों में अनुमति लेने के बाद रवाना होंगे। भद्रवाही यात्रियों द्वारा चौरासी परिसर में नृत्य किए जाने वाले दिन को न्हौण की जातर कहा जाता है। शिव चेले मंगलवार शाम तक यात्रियों को आशीर्वाद प्रदान करने के बाद चार सितंबर को मणिमहेश के लिए रवाना होंगे। जोकि पांच सितंबर को दोपहर बाद मणिमहेश झील में स्नान कर राधाष्टमी स्नान की विधिवत शुरुआत करेंगे। यह स्नान पांच सितंबर रात 8.42 बजे से लेकर छह सितंबर रात 8.41 बजे तक जारी रहेगा।

तिरलोचन के वंशज हैं शिव के चेले
शिव के चेले भरमौर मुख्यालय के साथ सटे गांव सचूई के रहने वाले हैं। इनके पूर्वज तिरलोचन थे, जो कि बहुत बड़े शिवभक्त थे। कहा जाता है कि भगवान शिव उनके सम्मुख आकर सीधे बातचीत करते थे। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले तिरलोचन पेशे से दर्जी थे। एक बार भगवान शिव तिरलोचन के परिवार की भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से उनके घर पहुंचे। भगवान शिव भेड़ पालक (गद्दी) के वेश में तिरलोचन की मां के पास भेड़ों के लिए नमक मांगने पहुंचे। चूंकि, परिवार गरीबी में जी रहा था इसलिए तिरलोचन की मां ने कहा कि उनके घर में इतना नमक नहीं है, जिस पर गद्दी के वेश में शिवजी ने कहा कि लकड़ी के बड़े से कंजाल (संदू्क) में बहुत अधिक नमक है। तिरलोचन की मां ने जब उस कंजाल को खोला तो यह नमक से भरा हुआ था।





मां ने इसे भगवान शिव की कृपा मानकर उस गद्दी को काफी नमक दे दिया। लेकिन, नमक बहुत भारी था, जिसे ले जाना अकेले गद्दी के वश में नहीं था तो मां ने अपने बेटे तिरलोचन को उस भेड़ पालक के साथ भेज दिया। चलते-चलते दोनों मणिमहेश पहुंच गए। यहां तिरलोचन ने उस गडरिये से पूछा कि यहां तो आपकी भेड़-बकरियां तो नहीं हैं तो आप नमक क्यों लाए? जिस पर भगवान शिव ने उसे अपना असली स्वरूप दिखाया और कहा कि अब तू घर लौट जा। लेकिन, इसके बारे में किसी को कुछ न बताना। इतना कहते ही भगवान शिव डल झील में अंतध्र्यान हो गए। यह सब देख तिरलोचन भी भगवान शिव के पीछे दौड़ता हुआ उसी डल झील में समा गया।

भक्त को अपने पीछे आते देख भगवान शिव ने उसे बचा लिया और कुछ वक्त अपने साथ रखा। कुछ माह बाद जब तिरलोचन ने घर लौटने की इच्छा जताई तो भगवान शिव ने अपनी वही शर्त दोहराते हुए कहा कि यह भेद किसी से न कहना। जब वह अपने गांव सचूई के ऊपर पहुंचा तो सोचा कि कुछ देर विश्राम करके घर जाता हूं। वह कमर में बांधी बांसुरी निकाल कर उसे बजाने लग पड़ा। बांसुरी की धुन से ही पहचान कर तिरलोचन की मां ने कहा कि मेरा तिरलोचन लौट आया है, लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं था। उसी दिन घर पर तिरलोचन की मृत्यु की छह मासिक क्रिया की जा रही थी। तिरलोचन को जब इस बात का पता चला तो उसने स्वयं को रावी नदी में समाहित कर लिया।




लेनी पड़ती है शिव चेलों की अनुमति
भगवान शिव ने फिर भेड़पालक के रूप में तिरलोचन की मां को उसी दिन आकर कहा कि तिरलोचन को मैंने अपने पास रख लिया है। अगर और कोई मेरे पास आना चाहे तो उसे आपकी आज्ञा लेनी होगी। माना जाता है कि इस घटना के बाद से ही मणिमहेश जाने वाले श्रद्धालु तिरलोचन के वंशजों से अनुमति लेकर ही यात्रा करते हैं। श्रीराधाष्टमी में सबसे पहले यही शिव चेले स्नान करके इस पर्व की शुरुआत करते हैं। श्रीराधाष्टमी स्नान के दौरान यह चेले डल झील के सबसे गहरे भाग से इसे पार करते हैं।


Posted By: Rajesh Sharma


मणिमहेश यात्रा: राधाष्टमी स्नान के लिए शिव चेलों ने दी अनुमति, जानिए मुहूर्त और मान्यता
 
Manimahesh Yatra: The Descendants Of Trilochan Mahadev Will Cross The Dal Lake
मणिमहेश यात्रा: त्रिलोचन महादेव के वंशज इस दिन पार करेंगे डल झील, शुरू होगा बड़ा शाही स्नान
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भरमौर(चंबा) Updated Wed, 04 Sep 2019 04:58 PM IST

शिव चेलों का आर्शीवाद लेते शिव भक्त

शिव चेलों का आर्शीवाद लेते शिव भक्त - फोटो : अमर उजाला


जन्माष्टमी पर छोटे न्हौण (स्नान) से शुरू हुई मणिमहेश यात्रा राधाष्टमी पर बड़े शाही स्नान के साथ संपन्न हो जाएगी। पांच सितंबर को रात 8:49 बजे राधाष्टमी के शुभ मुहूर्त पर बड़े शाही स्नान का आगाज होगा जो छह सितंबर रात 8:43 बजे खत्म होगा।

बड़े शाही स्नान का आगाज त्रिलोचन महादेव के वंशज शिव चेलों द्वारा डल तोड़ने (पवित्र डल झील को पार करने) से होगा। बुधवार को त्रिलोचन महादेव के वंशज संचूई गांव से चौरासी परिसर में यात्रियों को आशीर्वाद देने के बाद दोपहर के समय पवित्र मणिमहेश के लिए कूच कर गए हैं।

शिव चेले वीरवार दोपहर के समय पवित्र डल झील पर पहुंचेंगे। यहां पवित्र डल की परिक्रमा करने के बाद डल को पार करेंगे। वहीं, वीरवार दोपहर तक चरपटनाथ चंबा, दशनामी अखाड़ा की छड़ियां भी पवित्र डल में पहुंच जाएंगी।


जन्माष्टमी पर छोटे न्हौण (स्नान) से शुरू हुई मणिमहेश यात्रा राधाष्टमी पर बड़े शाही स्नान के साथ संपन्न हो जाएगी। पांच सितंबर को रात 8:49 बजे राधाष्टमी के शुभ मुहूर्त पर बड़े शाही स्नान का आगाज होगा जो छह सितंबर रात 8:43 बजे खत्म होगा।

बड़े शाही स्नान का आगाज त्रिलोचन महादेव के वंशज शिव चेलों द्वारा डल तोड़ने (पवित्र डल झील को पार करने) से होगा। बुधवार को त्रिलोचन महादेव के वंशज संचूई गांव से चौरासी परिसर में यात्रियों को आशीर्वाद देने के बाद दोपहर के समय पवित्र मणिमहेश के लिए कूच कर गए हैं।

शिव चेले वीरवार दोपहर के समय पवित्र डल झील पर पहुंचेंगे। यहां पवित्र डल की परिक्रमा करने के बाद डल को पार करेंगे। वहीं, वीरवार दोपहर तक चरपटनाथ चंबा, दशनामी अखाड़ा की छड़ियां भी पवित्र डल में पहुंच जाएंगी।

मणिमहेश यात्रा: त्रिलोचन महादेव के वंशज इस दिन पार करेंगे डल झील, शुरू होगा बड़ा शाही स्नान
 
Manimahesh Yatra: Shiva Disciples Crossed Dal Lake In Chamba Himachal
मणिमहेश यात्रा: शिव चेलों ने पार की डल झील, जयकारों से गूंजा कैलाश पर्वत
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भरमौर (चंबा) Updated Thu, 05 Sep 2019 07:43 PM IST

Manimahesh yatra

Manimahesh yatra - फोटो : अमर उजाला


राधाष्टमी पर मणिमहेश यात्रा के अंतिम बड़े शाही स्नान के लिए गुरुवार को हजारों श्रद्धालु पवित्र डल झील पर पहुंचे। यात्रा का मुहूर्त गुरुवार रात 8.49 बजे से शुक्रवार रात 8.43 बजे तक जारी रहेगा।

त्रिलोचन महादेव के वंशज शिव चेलों ने गुरुवार दोपहर डेढ़ बजे डल झील को पार करने की रस्म पूरी की, जिसके बाद पूरा कैलाश पर्वत शिव के जयकारों से गूंजयमान हो उठा।

शिव चेलों के झील पार करने (डल तोड़ने) की रस्म अदा होने के बाद दिन में ही सैकड़ों शिव भक्तों ने पवित्र डल में डुबकी लगाकर वापसी भी की। हालांकि, हजारों शिव भक्त राधाष्टमी के शुभ मुहूर्त पर पवित्र डल में डुबकी लगाने के लिए रुके रहे।

टोलियों में ये शिव भक्त भजन-कीर्तन करते रहे। इससे पूर्व दोपहर को डल झील की तीन बार परिक्रमा करने के बाद शिव चेले अपने निर्धारित स्थान पर आकर बैठ गए और डल तोड़ने की रस्म आरंभ हुई। कार्तिक स्वामी के चेले ने शिव चेलों की अगुवाई की।
झील में फल पकड़ने की परंपरा
kailash

kailash - फोटो : अमर उजाला
झील के एक छोर पर कार्तिक स्वामी का चेला रखवाली के लिए रुक गए। इस दौरान पवित्र डल की पूजा-अर्चना की गई। डल तोड़ने से पूर्व बलि की परंपरा थी लेकिन, न्यायालय के आदेश के बाद बलि के बजाय कच्चा नारियल काटकर झील में फेंका गया।

इसके बाद एक साथ हाथ पकड़कर शिव चेले झील में उतरे। इस दौरान हजारों श्रद्धालुओं भीड़ उमड़ गई। डल झील पार करने के बाद शिव भक्तों ने शिव चेलों को कंधों पर उठाकर बैठने के स्थान तक पहुंचाया।

मान्यता है कि त्रिलोचन महादेव के वंशज शिव चेलों को कंधों पर उठाने से हर मनोकामना पूरी होती है। उल्लेखनीय है कि आधिकारिक तौर पर 24 अगस्त से शुरू हुई मणिमहेश यात्रा 6 सितंबर को संपन्न हो जाएगी।

मान्यता है कि पवित्र झील में चेलों व यात्रियों द्वारा फेंके जाने वाले फलों को पकड़ने वाले यात्रियों की हर इच्छा शंकर भगवान पूरी करते हैं। आज भी यह मान्यता लोगों में विद्यमान है।

वहीं, डल के साथ ही काली माता की झील भी है। यहां पर शिव चेलों सहित यात्रियों के स्नान करने पर पाबंदी है। कुछ वर्ष पूर्व यहां पर यात्री स्नान करने के लिए उतर गए थे, जिनके शव कई दिनों बाद मिले थे।


 
मणि महेश यात्रा
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से


इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है।
कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (August 2018)



Golden Lake
Mani Mahesh Kailash


वृहत संहिता में तीर्थ का बड़े ही सुंदर शब्‍दों में वर्णन किया गया है। इसके अनुसार, ईश्‍वर वहीं क्रीड़ा करते हैं जहां झीलों की गोद में कमल खिलते हों और सूर्य की किरणें उसके पत्‍तों के बीच से झांकती हो, जहां हंस कमल के फूलों के बीच क्रीड़ा करते हों...जहां प्राकृ‍तिक सौंदर्य की अद्भुत छटा बिखरी पड़ी हो।' हिमालय पर्वत का दृश्‍य इससे भिन्‍न नहीं है। इसलिए इस पर्वत को ईश्‍वर का निवास स्‍थान भी कहा गया है। भगवदगीता में भगवान श्री कृष्‍ण ने कहा है, 'पर्वतों में मैं हिमालय हूं।' यही वजह है कि हिंदू धर्म में हिमालय पर्वत को विशेष स्‍थान प्राप्‍त है। हिंदुओं के पवीत्रतम नदी गंगा का उद्भव भी इसी हिमालय पर्वत से होता है।


अनुक्रम

मणिमहेश यात्रा

जुलाई-अगस्‍त के दौरान पवित्र मणिमहेश झील हजारों तीर्थयात्रियों से भर जाता है। यहीं पर सात दिनों तक चलने वाले मेला का आयोजन भी किया जाता है। यह मेला जन्‍माष्‍टमी के दिन समाप्‍त होता है। जिस तिथि को यह उत्‍सव समाप्‍त होता है उसी दिन भरमौर के प्रधान पूजारी मणिमहेश डल के लिए यात्रा प्रारंभ करते हैं। यात्रा के दौरान कैलाश चोटि (18,556) झील के निर्मल जल से सराबोर हो जाता है। कैलाश चोटि के ठीक नीचे से मणीमहेश गंगा का उदभव होता है। इस नदी का कुछ अंश झील से होकर एक बहुत ही खूबसूरत झरने के रूप में बाहर निकलती है। पवित्र झील की परिक्रमा (तीन बार) करने से पहले झील में स्‍नान करके संगमरमर से निर्मित भगवान शिव की चौमुख वाले मूर्ति की पूजा अर्चना की जाती है। कैलाश पर्वत की चोटि पर चट्टान के आकार में बने शिवलिंग का इस यात्रा में पूजा की जाती है। अगर मौसम उपयुक्‍त रहता है तो तीर्थयात्री भगवान शिव के इस मूर्ति का दर्शन लाभ लेते हैं।
स्‍थानीय लोगों के अनुसार कैलाश उनकी अनेक आपदाओं से रक्षा करता है, यही वजह है कि स्‍थानीय लोगों में महान कैलाश के लिए काफी श्रद्धा और विश्‍वास है। यात्रा शुरू होने से पहले गद्दी वाले अपने भेड़ों के साथ पहाड़ों पर चढ़ते हैं और रास्‍ते से अवरोधकों को यात्रियों के लिए हटाते हैं। ताकि यात्रा सुगम और कम कष्‍टप्रद हो। कैलाश चोटि के नीचे एक बहुत बड़ा हिमाच्‍छादित मैदान है जिसको भगवान शिव के क्रीड़ास्‍थल 'शिव का चौगान' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यहीं पर भगवान शिव और देवी पार्वती क्रीड़ा करते हैं। वहीं झील के कुछ पहले जल का दो स्रोत है। इसको शिव क्रोत्रि और गौरि कुंड के नाम से जाना जाता है।


चौरसिया मंदिर, भरमौर

चौरसिया मंदिर का नाम इसके परिसर में स्थित 84 छोटे-छोटे मंदिरों के आधार पर रखा गया है। यह मंदिर भरमौर या ब्रह्मपुरा नामक स्‍थान में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार 84 योगियों ने ब्रह्मपुरा के राजा साहिल बर्मन के समय में इस जगह भ्रमण करते‍ हुए आए थे। राजा बर्मन के आवभगत से अभिभूत होकर योगियों ने उनको 10 पुत्र रत्‍न प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। फलत: राजा बर्मन ने इन 84 योगियों की याद में 84 मंदिरों का निर्माण करा दिया। तभी से इसको चौरसिया मंदिर के नाम से जानते हैं। एक दूसरी धारणा के अनुसार एक बार भगवान शिव 84 योगियों के साथ जब मणिमहेश की यात्रा पर जा रहे थे तो कुछ देर के लिए ब्राह्मणी देवी की वाटिका में रुके। इससे देवी नाराज हो‍ गईं लेकिन भगवान शिव के अनुरोध पर उन्‍होंने योगियों के लिंग रूप में ठहरने की बात मान ली। कहा जाता है इसके बाद यहां पर इन योगियों की याद में चौरसिया मंदिर का निर्माण कराया गया। जबकि एक और मान्‍यता के अनुसार जब 84 योगियों ने देवी के प्रति सम्‍मान प्रकट नहीं किया तो उनको पत्‍थर में तब्‍दील कर दिया गया।



मणिमहेश्‍वर यात्रा मार्ग

मणिमहेश्‍वर 3950 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी चढ़ाई ज्‍यादा कठिन नहीं तो आसान भी नहीं है। इस मंदिर के दर्शन हेतु मई से अक्‍टूबर का महीना सबसे ज्‍यादा उपयुक्‍त है। लेकिन पहाड़ी चढ़ाई होने के कारण एक दिन में 4 से 5 घंटे तक की चढ़ाई ही संभव हो पाती है। मणिमहेश की यात्रा कम से कम सात दिनों की है। मोटे तौर पर मणिमहेश के लिए मार्ग है - नई दिल्‍ली - धर्मशाला - हर्दसार - दांचो - मणिमहेश झील - दंचो - धर्मशाला - नई दिल्‍ली.



पहला दिन
नई दिल्‍ली पहुंचकर धर्मशाला के लिए प्रस्‍थान।

दूसरा दिन
(धर्मशाला-हरसर-धन्छो, 2280 मीटर की ऊंचाई पर स्थित) हरसर से धन्छो जिसकी दूरी ४ कि॰मी॰ है, लेकिन जाने में 3 घंटे लग जाते हैं। यहाँ पर महंत श्री कृष्ण मुनि जी द्वारा भोजन आदि सहित रात गुजारने का अच्छा प्रबंध होता है !


तीसरा दिन
(धन्छो - मणीमहेश झील, 3950 मी. की ऊंचाई पर स्थित) धन्छो से मणीमहेश तक की चढ़ाई न केवल लंबी ही है, इस यात्रा का सबसे कठिनतम चरण भी है। इस मार्ग पर लगातार चढ़ाई करनी होती है। रात कैंप में ब्यतीत करनी होती है ।

चौथा दिन
(मणिमहेश झील-धन्छो) वापस आने की प्रक्रिया की शुरूआत। इसके तहत पहला दिन धन्छो में गुजारना होता है।

पांचवां दिन
(धन्छो-धर्मशाला)

छठा दिन
(धर्मशाला) यहां पहुंचने के उपरांत तीर्थयात्री अगर चाहें तो विभिन्‍न बौद्धमठों को देखने का लुत्‍फ उठा सकते हैं। इसके बाद शाम में पठानकोट पहुंचा जा सकता है। यहां से ट्रेन या सड़क मार्ग से दिल्‍ली के लिए प्रस्‍थान किया जा सकता है।

सातवां दिन
(आरक्षित दिन)
चम्बा बेस से जाने पर चढ़ाई कुछ आसान हो जाती है। तीर्थयात्री चाहें तो इस मार्ग का भी इस्‍तेमाल कर सकते हैं।



मणि महेश यात्रा - विकिपीडिया
 
मणिमहेश में शाही न्हौण शुरू, हजारों श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी

मणिमहेश में शाही न्हौण शुरू, हजारों श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी

शुक्रवार रात 8.43 बजे तक है शाही न्हौण का मुहूर्त

Update: Thursday, September 5, 2019 @ 10:19 PM

मणिमहेश में शाही न्हौण शुरू, हजारों श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी



चंबा। राधाष्टमी के पर्व पर मणिमहेश यात्रा (Manimahesh Yatra) के अंतिम बड़े शाही स्नान के लिए आज हजारों श्रद्धालु पवित्र डल झील पर पहुंचे। यात्रा का मुहूर्त गुरुवार रात 8.49 बजे से शुक्रवार रात 8.43 बजे तक होने के चलते मुहूर्त शुरू होते ही शाही न्हौण भी शुरू हो गया। इससे पहले त्रिलोचन महादेव के वंशज संचूई के शिव गुरों ने गुरुवार दोपहर डेढ़ बजे डल झील को पार करने की रस्म पूरी की, जिसके बाद पूरा कैलाश पर्वत शिव के जयकारों से गूंज उठा।

शिव चेलों के झील पार करने यानि डल तोड़ने की रस्म के साथ सैकड़ों शिव भक्तों ने पवित्र डल झील में आस्था की डुबकी लगाई। हजारों शिव भक्तों का राधाष्टमी के शुभ मुहूर्त पर पवित्र डल में डुबकी लगाने का क्रम जारी है। शिव की भक्ति में सराबोर भक्त भजन-कीर्तन करते रहे। इससे पूर्व दोपहर को डल झील की तीन बार परिक्रमा करने के बाद शिव चेले अपने निर्धारित स्थान पर आकर बैठ गए और डल तोड़ने की रस्म आरंभ हुई।

कार्तिक स्वामी के चेले ने शिव चेलों की अगुवाई की। झील के एक छोर पर कार्तिक स्वामी का चेला रखवाली के लिए रुक गए। इस दौरान पवित्र डल की पूजा-अर्चना की गई। डल तोड़ने से पूर्व बलि की परंपरा थी लेकिन, न्यायालय के आदेश के बाद बलि के बजाय कच्चा नारियल काटकर झील में फेंका गया। इसके बाद एक साथ हाथ पकड़कर शिव चेले झील में उतरे। इस दौरान हजारों श्रद्धालुओं भीड़ उमड़ गई। डल झील पार करने के बाद शिव भक्तों ने शिव चेलों को कंधों पर उठाकर बैठने के स्थान तक पहुंचाया।

कहते हैं कि त्रिलोचन महादेव के वंशज शिव चेलों को कंधों पर उठाने से हर मनोकामना पूरी होती है। बता दें कि आधिकारिक तौर पर 24 अगस्त से शुरू हुई मणिमहेश यात्रा (Manimahesh Yatra) 6 सितंबर को संपन्न होगी। कहते हैं कि पवित्र झील में चेलों व यात्रियों द्वारा फेंके जाने वाले फलों को पकड़ने वाले यात्रियों की हर इच्छा शंकर भगवान पूरी करते हैं। आज भी इस रिवायत को अगाध श्रद्धा के साथ निभाया जाता है। डल के साथ ही काली माता की झील है, जहां शिव चेलों सहित यात्रियों के स्नान करने पर पाबंदी है। कुछ वर्ष पूर्व यहां पर यात्री स्नान करने के लिए उतर गए थे, जिनके शव कई दिनों बाद मिले थे।

कुंजर महादेव में पवित्र कुएं से बरसीं शाही न्हौण की बौछारें
राधाष्टमी के पवित्र स्नान को एक और जहां मणिमहेश में देश विदेश के श्रद्धालू जुटे तो भट्टियात के पातका स्थित कुंजर महादेव में भी हजारों भक्त पवित्र जल की बौछारों में भीग धन्य हो रहे हैं। एक ही मुहूर्त में राधाष्टमी दोनों जगह मनाई जा रही है।
मणिमहेश की डल में जहां श्रद्धा की डुबकी लगी तो यहां पवित्र कुएं से पानी की ठंडी बौछारों में भीग पुण्य कमाया गया। एसडीएम चुवाड़ी बचन सिंह की अगुवाई में प्रबंधों और व्यवस्था की टोह मंगलवार को ही ले आया भट्टियात प्रशासन मुस्तैद है। चंबा से पहुंचा अतिरिक्त पुलिस बल यहां सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहा है।


मणिमहेश में शाही न्हौण शुरू, हजारों श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी
 
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